कुछ झूठी कविताएं
एक
झूठ लिखूंगा अगर लिखूंगा कि
कभी झूठ नहीं बोला
सच बोलने के लिए अब भी नहीं
लिख रहा
यह समझने के लिए लिख रहा
हूं
कि सच-झूठ के बीच किस तरह
झूलता रहा हमारा कातर वजूद।
जीवन भर सच बोलने की शिक्षा
और शपथ के बीच
कई फंसी हुई गलियां आईं जब
झूठ ने ही बच निकलने का रास्ता दिया।
जब सच से आंख मिलाने का
साहस नहीं हुआ तब झूठ ने ही उंगली पकड़ी और कहा, आगे चल।
यह झूठ के प्रति कृतज्ञता
ज्ञापन नहीं है,
बस यह समझने की कोशिश है कि
आखिर क्यों जी यह झूठी ज़िंदगी
क्या रस मिलता रहा इसमें?
या जैसे 24 कैरेट सोना ठोस
नहीं हो पाता,
उसमें भी दो कैरेट करनी
पड़ती है मिलावट
क्या कुछ वैसा ही है
ज़िंदगी का माज़रा?
जो सच के धागों से बुनी
होती है
लेकिन झूठ के फंदों में
फंसी होती है?
या यह एक झूठा तर्क है
अपने जिए हुए को, अपने किए
हुए को सही बताने का
झूठ को सच के सामने लाने का?
दो
सच बोलने के लिए जितना साहस
चाहिए
झूठ बोलने के लिए उससे
ज्यादा साहस चाहिए
आखिर पकड़े जाने का ख़तरा
तो झूठ बोलने वाले को उठाना पड़ता है।
सच बोलने वाले को लगता है,
सिर्फ वही सच्चा है
जबकि झूठ बोलने वाला जैसे
मान कर चलता है, सब उसकी तरह झुठे हैं
इस लिहाज से देखें तो झूठ
सच के मुकाबले ज़्यादा लोकतांत्रिक होता है।
सच इकहरा होता है, झूठ
रंगीन
सच में बदलाव की गुंजाइश
नहीं होती, झूठ में भरपूर लचीलापन होता है
कहते हैं, झूठ के पांव नहीं
होते, लेकिन उसके पंख होते हैं
लेकिन कहते यह भी हैं
दलीलों की ज़रूरत झूठ को
पड़ती है
सच को नहीं।
तीन
अक्सर बहुत ज़ोर से सच
बोलने का दावा करने वाले
भूल जाते हैं कि सच क्या है
सच की दिक्कत यह है कि वह
आसानी से समझ में नहीं आता
ज़िंदगी सच है या मौत?
अंधेरा सच है या रोशनी?
अगर दोनों सच हैं तो फिर
दोनों में फ़र्क क्या है?
सच सच है या झूठ?
झूठ भी तो हो सकता है किसी
का सच?
और ज़िंदगी के सबसे बड़े सच
सबसे नायाब झूठों की मदद से
ही तो खुलते हैं।
पूरा का पूरा रचनात्मक
साहित्य अंततः कुशल ढंग से बोला गया झूठ ही तो है
जो न होता तो ज़िंदगी के सच
हमारी समझ में कैसे आते?
कायदे से सच को झूठ का
आभारी होना चाहिए
झूठ है इसलिए सच का मोल है।
चार
झूठ है सबकुछ
झूठ है ज़िंदगी जिसे ख़त्म
हो जाना है एक दिन
झूठ हैं रिश्ते जो ज़रूरत
की बुनियाद पर टिके होते हैं
झूठ है प्यार, जो सिर्फ
अपने-आप से होता है- दूसरा तो बस अपने को चाहने का माध्यम होता है
झूठ है अधिकार, जो सिर्फ
होता है मिल नहीं पाता
झूठ है कविता- अक्सर भरमाती
रहती है
झूठ हैं सपने- बस दिखते हैं
होते नहीं
झूठ है देखना, क्योंकि वह
आंखो का धोखा है
झूठ है सच, क्योंकि उसके कई
रूप होते हैं
झूठ हैं ये पंक्तियां-
इन्हें पढ़ना और भूल जाना।