Monday, May 19, 2008

रात

हालांकि अंधेरी होती है,
लेकिन रात फिर भी बहुत कुछ बताती है
रात न होती तो हमें मालूम न होता
कि आसमान कितनी दूरस्थ संभावनाओं से लैस
एक जगमग उपस्थिति है
हम सिर्फ सूरज की चुंधियाती रोशनी में
आते-जाते और छाते बादलों के रंग देखते
और फिर किसी सुबह या शाम
नाखून जैसे चांद को देखकर चिहुंक पड़ते
सितारों और आकाशगंगाओं से हमारा परिचय रात ने कराया है
हमारी बहुत सारी कल्पनाएं रात की काली चादर में चांद-सितारों
की तरह टंकी पड़ी हैं
हमारी बहुत सारी कहानियों की ओट में है रात
जो हमारी नींद पर अंधेरे की चादर डाल देती है
जो हमारे सपनों की रखवाली करती है
जो हमें अगली सुबह के लिए तैयार करती है
उसमें दिन वाला ताप और उसकी चमक-दमक भले न हो
एक छुपी हुई शीतल मनुष्यता है जो अंधेरे में भी महसूस की जा सकती है

ध्यान से देखो
तो रात हमारे जीवन की सबसे पुरानी बुढ़िया की तरह नज़र आती है
क्षितिज के एक छोर से दूसरे छोर तक अपने काले बाल पसारे
सुनाती हुई हमें एक कहानी
जो सभ्यता की पहली रात से जारी है
सोए-सोए हम कहानी में दाखिल हो जाते हैं
हम जिन्हें सपने कहते हैं
वे रात की सुनाई हुई कहानियां ही तो हैं
जो हर सुबह थम जाती हैं
और रात को नए सिरे से शुरू हो जाती हैं
सारे देवता, सारे राक्षस, सारे सिकंदर, सारे शहजादे सारी परियां
तरह-तरह के रूप धर इन कहानियों में चले आते हैं

दरअसल यह रात का जादू है
जो सबसे ज्यादा प्रकाश की साज़िश से परिचय कराता है
रात को देखकर ही समझ में आता है
हमेशा अंधेरा प्रकाश का शत्रु नहीं होता
प्रकाश भी प्रकाश का शत्रु होता है
बड़ा प्रकाश छोटे-छोटे प्रकाशों को छुपा लेता है
या करीब के प्रकाश में दूर के प्रकाश नहीं दीखते
सूरज की रोशनी मे जो सितारे खो जाते हैं
रात उन्हें जगाती है, हम तक ले आती है
रात को ठीक से समझो
तो हमेशा अंधेरे से डर नहीं लगेगा,
बल्कि समझ में आएगा
अंधेरे में भी छुपी रहती हैं प्रकाश की गलियां
और जिसे हम प्रकाश समझते हैं
उसमें भी बहुत अंधेरा होता है।

यही वजह है कि हमारी रातों मे जितनी रोशनी बढ़ती जा रही है
हमारे दिनों में उतना ही अंधेरा भी बढ़ता जा रहा है