बहुत सारी चीज़ों पर आता है गुस्सा
सबकुछ तोड़फोड़ देने, तहस-नहस कर देने की एक आदिम इच्छा उबलती है
जिस पर विवेक धीरे-धीरे डालता है ठंडा पानी
कुछ देर बचा रहता है धुआं इस गुस्से का
तुम बेचैन से भटकते हो,
देखते हुए कि दुनिया कितनी ग़लत है, ज़िंदगी कितनी बेमानी,
एक तरह से देखो तो अच्छा ही करते हो
क्योंकि तुम्हारे गुस्से का कोई फ़ायदा नहीं
जो तुम तोड़ना चाहते हो वह नहीं टूटेगा
और बहुत सारी दूसरी चीजें दरक जाएंगी
हमेशा-हमेशा के लिए
लेकिन गुस्सा ख़त्म हो जाने से
क्या गुस्से की वजह भी ख़त्म हो जाती है?
क्या है सही- नासमझ गुस्सा या समझदारी भरी चुप्पी?
क्या कोई समझदारी भरा गुस्सा हो सकता है?
ऐसा गुस्सा जिसमें तुम्हारे मुंह से बिल्कुल सही शब्द निकलें
तुम्हारे हाथ से फेंकी गई कोई चीज बिल्कुल सही निशाने पर लगे
और सिर्फ वही टूटे जो तुम तोड़ना चाहते हो?
लेकिन तब वह गुस्सा कहां रहेगा?
उसमें योजना शामिल होगी, सतर्कता शामिल होगी
सही निशाने पर चोट करने का संतुलन शामिल होगा
कई लोगों को आता भी है ऐसा शातिर गुस्सा
उनके चेहरे पर देखो तो कहीं से गुस्सा नहीं दिखेगा
हो सकता है, उनके शब्दों में तब भी बरस रहा हो मधु
जब उनके दिल में सुलग रही हो आग।
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा
और तुम उनके गुस्से के शिकार हो जाओगे
उसके बाद कोसते रहने के लिए अपनी क़िस्मत या दूसरों की फितरत
लेकिन कई लोगों के गुस्से की तरह
कई लोगों की चुप्पी भी होती है ख़तरनाक
तब भी तुम्हें पता नहीं चलता
कि मौन के इस सागर के नीचे धधक रही है कैसी बड़वाग्नि
उन लोगों को अपनी सीमा का अहसास रहता है
और शायद अपने समय का इंतज़ार भी।
कायदे से देखो
तो एक हद के बाद गुस्से और चुप्पी में ज़्यादा फर्क नहीं रह जाता
कई बार गुस्से से भी पैदा होती है चुप्पी
और चुप्पी से भी पैदा होता है गुस्सा
कुल मिलाकर समझ में यही आता है
कुछ लोग गुस्से का भी इस्तेमाल करना जानते हैं और चुप्पी का भी
उनके लिए गुस्सा भी मुद्रा है, चुप्पी भी
वे बहुत तेजी से चीखते हैं और उससे भी तेजी से ख़ामोश हो जाते हैं
उन्हें अपने हथियारों की तराश और उनके निशाने तुमसे ज्यादा बेहतर मालूम हैं
तुमसे न गुस्सा सधता है न चुप्पी
लेकिन इससे न तुम्हारा गुस्सा बांझ हो जाता है न तुम्हारी चुप्पी नाजायज़
बस थोड़ा सा गुस्सा अपने भीतर बचाए रखो और थोड़ी सी चुप्पी भी
मुद्रा की तरह नहीं, प्रकृति की तरह
क्योंकि गुस्सा भी कुछ रचता है और चुप्पी भी
हो सकता है, दोनों तुम्हारे काम न आते हों,
लेकिन दूसरों को उससे बल मिलता है
जैसे तुम्हें उन दूसरों से,
कभी जिनका गुस्सा तुम्हें लुभाता है, कभी जिनकी चुप्पी तुम्हें डराती है।
17 comments:
इस गुस्से और चुप्पी की माला ऐसी है की आप इससे निकल नही सकते. अगर कुछ कर सकते हैं तो वो बस इतना की आप लोगो के लिए अच्छा भाव रखे.
कई लोगों को आता भी है ऐसा शातिर गुस्सा
उनके चेहरे पर देखो तो कहीं से गुस्सा नहीं दिखेगा
हो सकता है, उनके शब्दों में तब भी बरस रहा हो मधु
जब उनके दिल में सुलग रही हो आग।
इस स्थिति से बचाना चाहिए
अन्तिम पंक्ति में बचाना* की जगह बचना पढे
कायदे से देखो
तो एक हद के बाद गुस्से और चुप्पी में ज़्यादा फर्क नहीं रह जाता
बहुत सही कहा।
मानव की मनः स्थिति और चरित्र का बखान करती हुई एक लाजवाब रचना.
आपने अपनी कविता के माध्यम से अति सुंदर विश्लेषण किया.
ध्यान से पढने पर गुस्से से जुड़ी कई परेशानियों का हल भी मिलता है.
आभार.
क्या बात है गुस्से पर भी लिख दिया सर जी। "गुस्सा भी कुछ रचता है" बिल्कुल सही बात कह दी कितने प्यारे ढग से। मुझे शुरू से ही लगता है कि हर चीज सुन्दर है प्यारी है और पता नही क्या क्या है ये आप ही बता सकते है पर हर चीज की एक महीन सी लक्ष्मण रेखा होती है वो पार नही होनी चाहिए। अर्थात किसी चीज की अति नही होनी चाहिए।
कविता एक स्वांस में पढ कर महसूस की जाने वाली है, बेहद प्रभावी..
***राजीव रंजन प्रसाद
बस थोड़ा सा गुस्सा अपने भीतर बचाए रखो और थोड़ी सी चुप्पी भी
मुद्रा की तरह नहीं, प्रकृति की तरह
क्योंकि गुस्सा भी कुछ रचता है और चुप्पी भी
हो सकता है, दोनों तुम्हारे काम न आते हों,लेकिन दूसरों को उससे बल मिलता है
जैसे तुम्हें उन दूसरों से,कभी जिनका गुस्सा तुम्हें लुभाता है, कभी जिनकी चुप्पी तुम्हें डराती है।
बिल्कुल सही कहा आपने।
लाजवाब।
हमेशा की तरह साधारण से विषय की असाधारण खोज. इसपर मैं चुप्पी नहीं साध सकता था.
क्योंकि तुम्हारे गुस्से का कोई फ़ायदा नहीं
जो तुम तोड़ना चाहते हो वह नहीं टूटेगा
और बहुत सारी दूसरी चीजें दरक जाएंगी..ठीक कहा आपने..
गुस्से पर बहुत सुंदर रचना रची है आपने ...अच्छा लगा ....बधाई
अरूण आदित्य जी के मत से सहमत हूं।
दुष्यंत कुमार का शेर भी याद आया 'थोडी आंच बनी रहने दो, थोडा धुंआ निकलने दो'
उम्मीद है आप मजे में होंगे।
1. तुम्हारे गुस्से का कोई फ़ायदा नहीं
जो तुम तोड़ना चाहते हो वह नहीं टूटेगा
और बहुत सारी दूसरी चीजें दरक जाएंगी...
2. क्या कोई समझदारी भरा गुस्सा हो सकता है?लेकिन तब वह गुस्सा कहां रहेगा?
उसमें योजना शामिल होगी, सतर्कता शामिल होगी
...कायदे से देखो
तो एक हद के बाद गुस्से और चुप्पी में ज़्यादा फर्क नहीं रह जाता।
3. कुल मिलाकर समझ में यही आता है
कुछ लोग गुस्से का भी इस्तेमाल करना जानते हैं और चुप्पी का भी
उनके लिए गुस्सा भी मुद्रा है, चुप्पी भी।
सर, इन बंदों से गुजरने के बाद सारे भाव, सारे विचार गड्डमड्ड हो गए, इसलिए नहीं कि कविता की लय टूट गई बल्कि वजह ये थी कि एक बंद के बाद जो चीज जायज़ लगती अगले फ्रेम में लय में बहती कविता उस भाव की भी बखिया उधेड़ डालती। दिल में एक आस जरूर थी आखिर इतनी अच्छी समीक्षा के बाद आप कहीं तो ठहरेंगे...बस टिप्पड़ी के लिए हम आपसे वही शब्द उधार ले लेंगे....
"बस थोड़ा सा गुस्सा अपने भीतर बचाए रखो और थोड़ी सी चुप्पी भी
मुद्रा की तरह नहीं, प्रकृति की तरह"
(देर से पढ़ने के लिए क्षमा)
THANK YOU FOR WRITING SUCH A GREAT POEM...
well done.............
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 28 सितम्बर 2019 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
बहुत शानदार प्रस्तुति, बहुत ही उच्च स्तरीय व्याख्या।
अप्रतिम।
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