Thursday, November 29, 2007

कविता की जगह

सच है कि अकेली कविता बहुत कुछ नहीं कर सकती
हमारे समय में लड़ाइयों के जितने मोर्चे खुले हुए हैं
और वार करने की जितनी नई तरकीबें लोगो के पास हैं
खुद को बचाने के जितने सारे कवच-
उन सबको देखते हुए कविता एक निरीह सी कोशिश जान पड़ती है
एक ऐसी कोशिश जिस पर बहुत सारे हंसते हैं
और जिसका बहुत सारे अपने पक्ष में इस्तेमाल करते हैं।
कविता अब न किसी को डराती है
न किसी को जगाती है
वह न मिसाल बन सकती है न मशाल
ज्यादा से ज्यादा वह है एक ऐसा खयाल
जो आपको खुश करे तसल्ली दे
जिसे आप अपने बचे रहने की
तार-तार हो चुके सबूत की तरह देखें

यह भी सच है कि हमारा ज्यादातर समय कविता के बिना बीतता है
हमारी ज्यादातर लड़ाइयों में कविता काम नहीं आती
कई बार वह एक अनुपयोगी अनुषंग की तरह बची लगती है
जो डार्विन के विकासवाद के मुताबिक
सिकुड़ती-छीजती जा रही है
यह कह देना अहसास से कहीं ज्यादा चलन का मामला है
कि इसके बावजूद वह बची रहेगी
देती रहेगी दस्तक हमारी अंतरात्मा के बंद दरवाज़ों पर
कि किसी फुसफुसाहट की तरह नई हवाओ में भी हमें पुराने दिनों की याद दिलाती रहेगी
हमें हमसे मिलाती रहेगी
लेकिन सच्चाई यह है कि धीरे-धीरे जैसे ईश्वर की, वैसे ही कविता की भी
जगह घटती ही जा रही है जीवन में
ईश्वर से पैदा हुआ शून्य कविता भरती है
कविता से पैदा हुआ शून्य कौन भरेगा?
क्या कविता नहीं रहेगी तो
हमारा होना एक ब्लैकहोल में, किसी बुझे हुए सितारे की राख की तरह बचा रहेगा?
इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं, आपके पास हो तो हो
फिलहाल तो मैं बस इतना चाहता हूं कि मैं बना रहूं
और मुझमें मेरी कविताएं बनी रहें।

Wednesday, November 28, 2007

आग

अपने लिखने पर बहुत भरोसा रहा हमें
एक भोला भरोसा
जो एक कमजोर सी कलम के बूते देखता रहा दुनिया बदलने का सपना
जबकि दुनिया हमें बदलती रही
उसने हमारे लिए कलमें बनाईं
उनका मोल लगाया
उसने हमारी आग को अपनी धमन भट्ठियों के लिए इस्तेमाल किया
उसने हमारे हुनर से अपने घर सजाए
उसने हमारे ऊपर सुविधाओं का पानी डाला
हम पहले धुआं हुए, कुछ की आंखों में गड़े
फिर राख हुए
समाधिलेख की सामग्री बने
वैसे हमें बुझाने के और भी आसान तरीके सामने आ गए
लोगों ने पहले हमारा जादू देखा
फिर इस जादू का बिखरना देखा
हम बंद हो गए एक माचिस की डिबिया में
हम छोटी-छोटी तीलियों में बदल गए
बस इतने से आश्वस्त और खुश
कि हमारे भीतर बची हुई है आग
कि थोड़ी सी रगड़ से वह दिखा सकती है अपना कमाल
कि अब भी उसमें कहीं भी जल उठने, कुछ भी जला देने की क्षमता है
लेकिन माचिस की डिब्बी में बंद ये तीलियां
यह तक नहीं देख पाईं
कि वे किन पाकशालाओं, किन जेबों के हवाले हैं
और
किनका चूल्हा चलाने, किनकी सिगरेट जलाने में
उनका इस्तेमाल हो रहा है।
हम आग थे, हममें जलने की संभावनाएं थीं
हममें बदलने की संभावनाएं थीं
लेकिन हमने हवाओं से मुंह छुपाया
दिशाओं से पाला बदला
कुछ भी देखने से इनकार किया
ये भी नहीं देखा
जिसे हमें मशाल समझते रहे
वह तीली-तीली सिमटती गई
बडी उपमाओं के नीचे बनते रहे छोटे-छोटे यथार्थ
ध्यान से देखें तो जिनमें दिखेगी एक अट्टाहासी कामयाबी
आग को जीतकर ही इंसान ने सभ्यता बनाई
आग को गुलाम रखकर ही वह अपनी इस सभ्यता को बचा रहा है।