मैंने पूछा, अब तबीयत तो ठीक रहती है
वह मेरे साथ रसोई में काम करती रही
शाम को टहलने भी निकली
मैं छुपा रहा था वे रचनाएं वे लेख
जिनमें उसकी बीमारी और मौत का ज़िक्र था
मैंने पूछा, तुम्हें पता है, मेरी किताब छपी. मेरा एक बेटा है
उसे पता था
हम बहुत देर तक साथ रहे,
उसने बताया, उसे रात साढे नौ उसे नींद आने लगती है
न जाने किस शहर का जिक्र वह करती रही
मुझे लगता रहा वह सिर्फ मेरे बारे में सोच रही है
अपनी परेशानी, अपनी बीमारी और अपनी मौत से
यह आठ दिसंबर की सुबह का सपना था
जब आंख खुली
तो लगा, ऐसी उजली, ऐसी मुलायम ऐसी शांत सुबह
तो जीवन में कभी आई ही नहीं।
19 comments:
भावुक कर दिया .आपने ..माँ ऐसी ही होती है
बेहद दिल को छू लेने वाली रचना .माँ हर पल याद आती है ..
माँ तो माँ होती हैं। दिल को छुकर भावुक कर गई ये रचना।
मार्मिक कविता, माँ की सचमुच याद आ गयी
बहुत भावुक रचना ...माँ ! जिसका मुकाबला किसी से नहीं...
आपने सबका दर्द कह डाला...
मां
रहती तो है साथ
पर आती नहीं कभी
इस शहर की महक उसे पसंद नहीं
मेरी चहक उसे पसंद है
पर
दिल्ली की दहक उसे पसंद नहीं
बहुत अच्छी रचना है । भावों और िवचारों का प्रखर प्रवाह है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
आपकी कविताएं जादुईं होती हैं प्रियदर्शन जी. और फिर, वे संवेदनाएं जो रिश्तों से पैदा होतीं हैं, वे भी तो जादुई होती हैं. कब बरसों पहले गई मां को सपने में ला कर हकीकत को तरोताजा कर दें, ऐसी संवेदनाएं सबसे करीबी रिश्तें से ही पैदा होती हैं. और कहना न होगा कि यह निकटतम संबंध मां से होता है..
ऐसी सुबह तो माँ के आने पर ही आती है चाहे वह सपने में ही आए। संवेदनशील कविता , धन्यवाद
mma to hoti hi hai mulayam aur pal khas. chhe vo sapne me aaye ya sath ho..achi lagi maa ke sath sapne me hi sahi batkahi.
vastav me mma ke sath sapne me hi sahi batkahi achi lagi..
ऐसे सपनो वाली नींद से जगना बहुत कष्टकर होता है...!
हर काव्य देह की पीड़ा है...
विचलित विचार है, केवल मन...!
माशा-अल्लाह ! मां का एहसास महसूसा मैंने भी आपकी इस संवेदना में...
सच "पराग".............माँ तो ऐसी ही होती है ना होकर भी आया करती है....हमारी देखभाल कर के जाया करती है.....दरअसल माँ को ये विश्वास ही नहीं होता कि उसके बगैर उसके बच्चों को कोई ठीक से पाल भी सकता है....मैंने सच तो कहा ना पराग.........!!??
दिल को छू गयी आपकी यह कविता..
dil ko chhoo liya aapki is rachna ne
बेहद पवित्र कविता !
मां :यानी एक शब्द में लिखा गया महाग्रन्थ !!!
आज की आवाज
माँ सम्पूर्णता का अहसास कराती है,माँ जीवम को जीवंत बनाती है..।
उत्तम रचना......।
माँ जीवन का प्रथम शब्द माँ प्राकृतिक शब्द.....माँ है तो सब कुछ है माँ नहीं तो कुछ भी नहीं...भावप्रवण रचना...सार्थक ज्ञान..।
Post a Comment